होलिका दहन क्यों मनाया जाता है।

Author: in June 23, 2021

भारत मे सदियों से होली से ठीक पहले होलिका दहन परम्परा चली या रही है । होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कई कथाएं प्रचलित है । जिनमे भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप से जुड़ी कथा सर्वमान्य है । तो चलिए पहले जानते है होलिका दहन क्यों मनाया जाता है  और  होलिका कौन जाति की थी? होली से पहले क्यों किया जाता है होलिका दहन?

होलिका दहन क्यों मनाया जाता है 

असुर हिरण्यकश्यप वन नामक स्थान का राजा था जो कि वर्तमान में भारत देश के राजस्थान राज्य में स्थित है जिसे Hindaun  नाम से जाना जाता है। हिरण्यस उसका छोटा भाई था  जिसका वध वराह ने किया था।


 विष्णु पुराण में वर्णित एक  कथा के अनुसार दैत्यों के आदि पुरुष कश्यप और उनकी पत्नी के तीती के  दो पुत्रों हुए । 

हिरण्यसकु ओर हिरण्याक्ष 

हिरण्यसकु ने कठिन तपस्या कर  ब्रह्मा को प्रसन्नकरके ये वरदान  प्राप्त कर लिया की न वो किसी मनुष्य द्वारा मरा जा  सकेगा। ओर ना पशु द्वारा ना दिन में मारा  जा सकेगा  ओर ना  रात में ना  घर के अंदर ना बाहर ना किसी अस्त्र के प्रहार से ओर किसी शस्त्र के प्रहार से उसके  प्राणों कोई फार सकेगा । 

इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वो  खुद को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया  और तीनों लोगों को प्रताड़ित करने लगा वह चाहता  था कि सब लोग उसे ही भगवान माने और उसकी पूजा करें। 

उसने आपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया हिरण्यसकू का पुत्र परलाद  भगवान विष्णु का उपासथ था और यातना एवं प्रार्थना के वाबजूद विष्णु की पूजा करता रहा क्रोधित होकर   हिरण्यसकू ने अपने बहन होलिका से कहा कि वो अपनी गोद मे परलाद लेकर  प्रचलित अग्नि में चली जाए क्योंकि होलिका को वरदान था कि वो अग्नि में नही जलेगी 

जब होलिका ने परलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो परलाद का बाल भी  वाका  नही हुआ होलिका जल कर राख हो गयी अंतिम प्रयाश में हिरण्यसकू  लोहे की एक खम्भे को गर्म कर लाल कर दिया तथा परलाद को उसे गले लगने को कहा एक बार फिर भगवान विष्णु परलाद को उओरने  आये वो खम्भे से नरसी के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यसकू को महल के प्रवेश द्वार की चोकट पर जो नाग घर का बाहर था ना भीतर गोधली बेल में जब दिन था ना रात आधा मनुष्य आधा पशु जो ना नर था ना पशु ऐसे नरसिम के रूप में आपने लबे तेज नाखून से जो ना अस्त्र ने सत्र मार डाला । 

इस प्रकार हिरणकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्म के कारण भयानक अंत को प्राप्त किया इस कथा के आधार मान कर भारत मे होलिका दहन की सुरुवात हुई जो आज तक चली आ रही है ।

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